10 साल पुरानी कार कबाड़, 30 साल पुराना विमान कैसे सही? गाड़ियों पर बैन से लाखों लोग परेशान, यूं बयां किया दर्द
Delhi vehicle policy: दिल्ली-NCR में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल कारों पर बैन ने लाखों मिडिल क्लास परिवारों को संकट में डाल दिया है.ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब विमान उम्र की जगह फिटनेस से उड़ते हैं, तो कारों को सिर्फ उम्र के आधार पर कबाड़ क्यों घोषित किया जा रहा है?
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दिल्ली में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल कारों पर प्रतिबंध का फैसला लोगों के लिए मुसीबत बन गया है. सरकार ने भले ही ये कदम पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उठाया हो, लेकिन इससे मिडिल क्लास पर भारी आर्थिक बोझ पड़ने वाला है. यही कारण है कि रेखा गुप्ता सरकार के इस फैसले को लेकर दिल्ली-एनसीआर की जनता ने सोशल मीडिया पर नाराजगी जताते हुए कई सवाल उठाए हैं.
हमारे सहयोगी वेबसाइट आजतक ने अपने एक रिपोर्ट में ऐसे ही एक 65 साल के रिटायर्ड बैंक कर्मचारी सुरेश चावला (बदला हुआ नाम) की कहानी बताई है. सुरेश दिल्ली के उन लाखों लोगों में से एक हैं जो इस प्रतिबंध से प्रभावित हुए हैं. उन्होंने अपने रिटायरमेंट से चार साल पहले डीजल से चलने वाली डिजायर खरीदी थी. आज के समय में उनकी कार मुश्किल से 7000 किलोमीटर चली है और उस कार का ज़्यादातर इस्तेमाल उनकी बीमार पत्नी को फिजियोथेरेपी के लिए अस्पताल ले जाने में हुआ है.
उन्होंने बताया कि उनके बच्चे विदेश में बस गए हैं, ऐसे में उन्हें अब बैंक से कार लोने में भी काफी मुश्किल होगी और सरकार उनकी कार को 10 साल की उम्र पूरी होने के बाद सड़क पर चलने नहीं देगी. चावला जी कहते हैं, "कार के बिना दिल्ली में अब मैं अपने को बेकार समझता हूं."
लाखों लोगों की है यही कहानी
यह कहानी दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लाखों लोगों की है, जो अपनी पुरानी गाड़ियों के कारण मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. छोटे काम करने वाले लोग जो अपनी पुरानी इको जैसी गाड़ियों का इस्तेमाल कई कामों के लिए करते थे, उन पर भी तुरंत नई गाड़ी खरीदने का दबाव आ गया है. यह प्रतिबंध कोई नया नहीं है; कोर्ट और एनजीटी ने 2015 में ही दिल्ली-एनसीआर में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध का आदेश दिया था, लेकिन अब तक इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया था.
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सरकार के खिलाफ अपनों का मोर्चा
राजधानी दिल्ली में जब से रेखा गुप्ता सरकार ने ऐसी गाड़ियों को सड़क से हटाने का प्लान बनाया है, तब से बीजेपी समर्थकों ने ही सरकार का विरोध शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर तमाम बीजेपी समर्थक हैंडल्स ने रेखा सरकार के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.
भारतीय जनता पार्टी की समर्थक कल्पना श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए लिखती हैं, 'दिल्ली सरकार का यह फैसला सिर्फ एक जल्दबाजी का कदम नहीं, बल्कि आम आदमी के साथ अन्याय भी है. वह सवाल उठाती हैं कि अगर 62 लाख गाड़ियों की 'आयु' समाप्त हो गई है, तो सरकार उन्हें एक साथ जब्त क्यों नहीं कर रही? उनका जवाब स्पष्ट है: सरकार के पास न तो संसाधन हैं और न ही योजना.
श्रीवास्तव ने उसी ट्वीट में दिल्ली ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट की 2022 की नोटिस पर भी सवाल उठाया है, जिसमें कहा गया है कि पुरानी गाड़ियां प्रदूषण बढ़ाती हैं. वह पूछती हैं कि क्या कोई ठोस डेटा है कि 10 साल की आयु ही प्रदूषण का पैमाना होनी चाहिए? यूरोपियन अध्ययनों (जैसे ScienceDirect, 2023) का हवाला देते हुए वह कहती हैं कि वाहन की माइलेज और रखरखाव प्रदूषण का असली कारण है, न कि उम्र.
वह यह भी पूछती हैं कि सीएनजी किट या इलेक्ट्रिक कन्वर्जन जैसे विकल्प क्यों नहीं दिए जा रहे हैं. IOAGPL की रिपोर्ट (2024) बताती है कि 10 साल से नई गाड़ियों में सीएनजी किट लगाने की लागत 50,000-70,000 रुपये है, जो मध्यम वर्ग के लिए किफायती है. उनका सुझाव है कि अगर सरकार सब्सिडी दे तो लाखों लोग इसे अपनाएं, प्रदूषण भी कम हो और गाड़ी भी बचे.
स्क्रैप पॉलिसी पर सवाल और ऑटोमोबाइल लॉबी का प्रभाव
कल्पना श्रीवास्तव कहती हैं कि इस पॉलिसी के पीछे स्क्रैप डीलर्स और सेकंड हैंड मार्केट को फायदा पहुंचाने की साजिश साफ नजर आ रही है. उन्होंने Cero Recycling जैसे संगठनों का भी जिक्र किया है, जो साल 2030 तक 300 मिलियन टन स्टील रिसाइकल करना चाहते हैं. वह सवाल करती हैं कि क्या यह पॉलिसी उनके लिए एक "ट्रायल बलून" है? मध्यम वर्ग की गाढ़ी कमाई पर डाका डालना कहां का इंसाफ है?
अन्ना आंदोलन को किया याद
कल्पना श्रीवास्तव ने साल 2011 के अन्ना हजारे आंदोलन को याद करते हुए कहा कि अगर 62 लाख गाड़ी मालिक एकजुट हो जाएं, तो यह पॉलिसी हफ्ते भर में वापस हो सकती है. वह दिल्ली के मध्यम वर्ग से जागने का आह्वान करती हैं.
जीडीपी का 7.1% का योगदान देता है ऑटोमोबाइल उद्योग
भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो जीडीपी में 7.1% का योगदान देता है और 3.7 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है. ऐसे में सरकार की नीतियों और ऑटो लॉबी (जैसे सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स, SIAM) के बीच संबंधों पर सवाल उठ रहे हैं. कुछ लोग दावा करते हैं कि सरकार ऑटो लॉबी के दबाव में काम कर रही है, क्योंकि ऑटोमोबाइल सेक्टर की बिक्री लगातार घट रही है.
उदाहरण के लिए, 2025 में सरकार ने कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी (CAFE) नियमों के तहत 2027 तक कार्बन उत्सर्जन को 33% कम करने का प्रस्ताव रखा, जिसे SIAM ने "अति आक्रामक" बताकर 15% कटौती का सुझाव दिया. 'एक्स' पर एक हैंडल ने लिखा है, "आज सरकार गाड़ियों की आयु तय कर रही है. नाम पर्यावरण का, खेल सिर्फ़ ऑटो माफिया का है." इसी तरह एक अन्य हैंडल ने लिखा, "सरकार को ऑटोमोबाइल लॉबी और ऐप-बेस्ड टैक्सी लॉबी ने खरीद लिया है."
कार एक "लक्जरी" या "जरूरत"?
हमारे देश यानी भारत में आज भी कार को विकसित देशों की तरह उपयोगिता के रूप में नहीं देखा जाता है. यहां यह काफी हद तक लक्जरी और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बना हुआ है. यही वजह है कि इस देश में छोटी कारें सफल नहीं हुईं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण टाटा नैनो का फ्लॉप होना माना जा सकता है. इस बड़े अंतर को ऐसे भी समझिये कि आजतक की ही एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 में भारत में प्रति 1,000 लोगों पर केवल 26 कारें थीं, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 800 से अधिक है.
10-15 साल पुरानी गाड़ी को बैन करना मध्यम वर्ग की जेब पर सीधा हमला है. भारत में ज्यादातर लोगों को कार खरीदने के लिए लोगों को कर्ज लेना पड़ता है और यह उनके जीवन के सबसे बड़े निवेशों में से एक होती है. हमारी संस्कृति में पुरानी चीजों को सहेजने की आदत है, फिर चाहे वह गाड़ी हो या कपड़े. पुरानी गाड़ियों पर प्रतिबंध मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग को नई गाड़ियां खरीदने के लिए मजबूर करता है, जो बढ़ती महंगाई (2024 में 5-6%) और कर्ज के बोझ में और इजाफा करता है.
एक हिंदुत्व समर्थक हैंडल लिखते हैं कि एक तरफ सरकार मानती है कि भारत इतना गरीब देश है कि यहां 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देना पड़ता है, वहीं दूसरी तरफ वह यहां के लोगों को इतना अमीर भी मानती है कि वे हर दस साल में एक नई गाड़ी ले सकते हैं.
आज कार तो कल फ्रिज और कंप्यूटर की भी आयु तय करेगी सरकार
एक और 'एक्स' हैंडल ने लिखा कि "आज सरकार गाड़ियों की आयु तय कर रही है, कल आपके घर में फ्रिज, एसी और कंप्यूटर की आयु तय करेगी." वह विज्ञान और शोध के बजाय कार की आयु तय करने पर सवाल उठाते हैं. वह आगे पूछते हैं कि सड़क और पुल की आयु क्यों नहीं जांची जाती, जो बनते ही खराब हो जाते हैं? यमुना साफ नहीं हुई, बारिशों में सड़कों पर पानी भर जाता है, नाले साफ नहीं होते, कूड़े के पहाड़ लगे हुए हैं, घरों में गंदा पानी आता है, स्कूलों में टीचर्स नहीं आते - और इन सब समस्याओं का उपाय है कि आप पुरानी गाड़ी न चलाएं?
जब सरकार के अपने ही समर्थक उसके फैसलों पर सवाल उठाने लगें, तो यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं सरकार से कुछ गलती हो रही है. अगर 50 से 60 साल पुराने फाइटर प्लेन और 30 साल पुराने यात्री विमान चल सकते हैं और उन्हें फिटनेस सर्टिफिकेट मिल सकता है, तो फिर किस आधार पर दस साल पुरानी कारों को सड़क से हटाया जा रहा है? क्या सरकार के पास इस समस्या का कोई और समाधान नहीं है?