टीचर या सरकार...कौन हैं झालावाड़ स्कूल हादसे का असली जिम्मेदार? 

ललित यादव

Jhalawar: राजस्थान के झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में आज सुबह एक सरकारी स्कूल की छत अचानक गिर गई. हादसे के वक्त क्लास में लगभग 60 बच्चे मौजूद थे. इस दर्दनाक दुर्घटना में कम से कम 7 बच्चों की मौत हो गई.

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Jhalawar: राजस्थान के झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में आज सुबह एक सरकारी स्कूल की छत अचानक गिर गई. हादसे के वक्त क्लास में लगभग 60 बच्चे मौजूद थे. इस दर्दनाक दुर्घटना में कम से कम 7 बच्चों की मौत हो गई और 30 से अधिक बच्चे घायल हुए, जिनमें से कई की हालत गंभीर है. शिक्षा विभाग ने एक्शन लेते हुए 5 शिक्षकों को सस्पेंड कर दिया है. इस घटना पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, राहुल गांधी ने दुख जताया है.

हादसे से पहले क्या हुआ था?

हादसे को लेकर आठवीं क्लास में पढ़ने वाली छात्रा वर्षा ने बताया कि सुबह बच्चों को प्रार्थना के लिए क्लास में बिठाया गया था. रोज प्रार्थना बरामदे में होती थी. लेकिन जब बारिश होती थी तब क्लास के अंदर प्रार्थना करवाई जाती थी. आज बारिश भी नहीं हो रही थी उसके बावजूद भी सभी बच्चों को कक्षा के अंदर बिठाया गया. अचानक कंकर गिरने लगे तो बच्चों ने शिक्षकों को बुलाया.

शिक्षक बाहर बैठकर नाश्ता कर रहे थे. शिक्षकों को बच्चों ने जब कंकड़ गिरने की बात बताई तो शिक्षकों ने बच्चों को डांट दिया और वापस क्लास में बैठने के लिए बोला. उसके बाद दीवार ढह गई और छत बच्चों पर गिर गई. इस दौरान कई बच्चे बचकर इधर-उधर भागे और कई बच्चे दबे रह गए. हर तरफ चीख-पुकार मच गई थी. उसके बाद गांव वालों के साथ मिलकर बच्चों को निकाला गया.

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वर्षा बताती है कि अगर शिक्षक बच्चों की बात सुन लेते और जाकर क्लास में देख लेते की दीवार धीरे-धीरे गिर रही है कंकर गिर रहे हैं तो शायद बच्चों को वहां से निकाल लिया जाता. बता दें कि यह स्कूल 1 से आठवीं क्लास तक था, जिसमें पीपलोदी गांव और पास के ही गांव के बच्चे पढ़ने के लिए आते थे. स्कूल में कुल 50 से 60 बच्चों की संख्या थी.

शिक्षक बच्चों से करवाते हैं स्कूल में साफ सफाई

छात्रा वर्षा ने बताया कि स्कूल में सुबह शिक्षकों ने 7:00 बजे बुलाया था. सभी बच्चों से क्लास और बरामदे की सफाई करवाते हैं. उसके बाद ही प्रार्थना करवाई जाती है. आज भी कुछ बच्चे बाहर सफाई कर रहे थे और शिक्षक नाश्ता कर रहे थे और बाकी बच्चे क्लास में बैठे हुए थे उस समय यह हादसा हुआ.

स्कूल की दीवार और छत पूरी तरह जर्जर हो गई थी और एक महीने पहले ही सीमेंट लगाकर लीपा पोती की गई थी.

किसकी लापरवाही से हुआ हादसा?

जिला कलेक्टर ने कहा शिक्षकों इस मामले में लापरवाही रही. झालावाड़ जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ का कहना है कि हमने जून में ही आदेश दे दिए थे कि कोई भी स्कूल की बिल्डिंग जो जर्जर हो उसमें बच्चों को नहीं बिठाना है और हमें इस बारे में अवगत करवाए. उन्होंने बताया, जो बिल्डिंग ज्यादा जर्जर थी उनको हमने ठीक भी किया है. शिक्षकों की लापरवाही रही है जिन्होंने इस स्कूल के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. जांच कमेटी गठित की है जांच आने के बाद और आगे की कार्रवाई की जाएगी.

क्या कहता है नियम?

नियम के अनुसार, हर 3 साल में एक बार स्कूल भवन का सुरक्षा प्रमाण पत्र PWD विभाग से बनवाना अनिवार्य होता है. इसके लिए स्कूल प्रशासन को विधिवत आवेदन करना होता है लेकिन ऐसा कुछ ही स्कूल करते हैं. बाकी कई स्कूल इसकी जानकारी PWD या जिला अधिकारी को नहीं देते हैं.  

कई जगह तो पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी (PEEO) खुद अपनी लेटरपैड पर यह लिखकर प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं कि भवन की मरम्मत की आवश्यकता है, या भवन सुरक्षित है.

क्यों जर्जर स्कूलों की जानकारी नहीं दी जाती?

एक शिक्षक ने नाम ने छापने की शर्त पर बताया कि जब स्कूलों की हालात जर्जर हो जाती है तो इसकी जानकारी शिक्षकों को PWD विभाग या जिला शिक्षा अधिकारी को देनी होती है. इसके लिए हर 3 वर्ष में PWD से सुरक्षा प्रमाण पत्र लेना आवश्यकता होता है लेकिन वह नहीं लिया जाता है. 

स्कूल जर्जर की जानकारी देने का का नुकसान टीचर्स को उठाना पड़ता है. रिपोर्ट के बाद जर्जर स्कूल को जब नए सिरे से बनाया जाता है तो उस स्कूल को दूसरे स्कूल में मर्ज कर दिया जाता है. ऐसे में कुछ टीचर्स को इधर-उधर और कई टीचर्स का ट्रांसफर कहीं दूर कर दिया जाता है. इसलिए वह स्कूल की सुरक्षा जांच से बचते और अपने स्तर पर ठीक करवा देते हैं.  

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