Iran-Israel Conflict: ईरान-इज़राइल टकराव, परमाणु हमले और वैश्विक तनाव की पूरी कहानी

ऋषि सिंह

ईरान ने 'ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3' नामक जवाबी कार्रवाई के तहत 100 से अधिक मिसाइलें इज़राइली ठिकानों पर दागीं. उसने दावा किया है कि दो इज़राइली F-35 लड़ाकू विमान भी मार गिराए गए हैं. साथ ही, फोर्दो परमाणु स्थल पर हुए नुकसान को सीमित बताया गया है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह स्पष्ट हो चुका है कि अब मामला सिर्फ क्षति तक सीमित नहीं रहा. दोनों देश खुलकर आमने-सामने आ चुके हैं.

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मध्य-पूर्व एक बार फिर युद्ध की आग में झुलस रहा है. इज़राइल ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य ढांचे पर सीधा हमला किया है, जिससे पूरा क्षेत्र दहशत में है. इस हमले में ईरान के छह वैज्ञानिक, कई टॉप मिलिट्री कमांडर और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख मारे गए हैं. जवाब में ईरान ने 'ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3' नाम की जवाबी कार्रवाई में सैकड़ों बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. ईरान की ओर से किए गए इस हमले में 2 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, 20 से अधिक घायल हैं. वहीं, संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत ने कहा कि इजराइली हमलों में 78 लोग मारे गए और 320 से अधिक घायल हुए है. 

देखा जाए तो अब सवाल सिर्फ जवाबी हमलों का नहीं है, बल्कि उस संभावित संघर्ष का है जो न केवल इन दो देशों की सीमाओं को पार कर सकता है, बल्कि पूरी दुनिया को एक नए सैन्य और रणनीतिक संकट की ओर धकेल सकता है. क्योंकि इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट शब्दों में कहा है हम तब तक नहीं रुकेंगे, जब तक ईरान का परमाणु खतरा पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता. 

इज़राइल ने फोर्दो और नतांज़ स्थित ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों पर तीव्र हवाई हमले किए, जिनमें कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों और सैन्य अधिकारियों की मौत हो गई. ये वही संवेदनशील स्थल हैं जहाँ ईरान उच्च स्तर तक यूरेनियम संवर्धन कर रहा था. नतांज़ का भूमिगत संवर्धन संयंत्र और फोर्दो की पहाड़ियों के भीतर स्थित सुविधा, दोनों ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं के प्रतीक रहे हैं. इन पर किया गया हमला सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक स्पष्ट रणनीतिक संदेश है कि इज़राइल अब अपनी सुरक्षा को लेकर किसी तरह की अनिश्चितता या कूटनीतिक देरी के लिए तैयार नहीं है. उसके कदम अब निर्णायक और प्रत्यक्ष हैं.

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ईरान ने 'ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3' नामक जवाबी कार्रवाई के तहत 100 से अधिक मिसाइलें इज़राइली ठिकानों पर दागीं. उसने दावा किया है कि दो इज़राइली F-35 लड़ाकू विमान भी मार गिराए गए हैं. साथ ही, फोर्दो परमाणु स्थल पर हुए नुकसान को सीमित बताया गया है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह स्पष्ट हो चुका है कि अब मामला सिर्फ क्षति तक सीमित नहीं रहा. दोनों देश खुलकर आमने-सामने आ चुके हैं.

ईरान का परमाणु इतिहास: संदेह की नींव, संघर्ष की दीवारें

ईरान का परमाणु कार्यक्रम दशकों से वैश्विक संदेह और भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र बना हुआ है. 2002 में नतांज़ और फोर्दो जैसे गुप्त परमाणु ठिकानों के खुलासे ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया. यह पहली बार था जब स्पष्ट हुआ कि ईरान सिर्फ शांतिपूर्ण ऊर्जा कार्यक्रम तक सीमित नहीं था, बल्कि वह परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में भी बढ़ रहा था. इस पर अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने गंभीर चिंता जताई और ईरान पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी. अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए कूटनीतिक दबाव, आर्थिक प्रतिबंध और समय-समय पर छुपे हुए खुफिया अभियान चलाए. इसके बावजूद, ईरान लगातार अपनी परमाणु गतिविधियों को बढ़ाता रहा, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर तनाव गहरा गया.

अमेरिका और ईरान के परमाणु वार्ताओं की प्रमुख टाइमलाइन

  • जून 2013 में, ईरान के नए राष्ट्रपति हसन रुहानी ने पश्चिमी देशों के साथ संबंध सुधारने और परमाणु विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का स्पष्ट आश्वासन दिया. इसी समय, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन ने कूटनीति के रास्ते पर जोर देते हुए वार्ताओं को बढ़ावा दिया.
  • ओबामा प्रशासन ने सैन्य विकल्प के बजाय राजनयिक समाधान को प्राथमिकता दी और छः शक्तिशाली देशों के साथ मिलकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नियंत्रित करने के लिए बातचीत का नेतृत्व किया. इस प्रयास का उद्देश्य था कि ईरान को परमाणु हथियारों के निर्माण से रोका जाए और क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे.
  • जुलाई 2015 में, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन, और जर्मनी समेत छह शक्तिशाली देशों ने ईरान के साथ ‘ज्वाइंट कॉम्ब्रिहेंस प्लान ऑफ एक्शन’ (JCPOA) या इरान परमाणु समझौता किया.
  • इसके तहत ईरान ने यूरेनियम संवर्धन को सीमित करने, परमाणु भंडार घटाने और परमाणु ठिकानों पर अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण स्वीकार करने का वचन दिया. इसके बदले में पश्चिमी देशों ने उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में छूट दी.
  • 2016-17 में JCPOA के लागू होने के बाद अमेरिका और यूरोप ने ईरान के साथ कूटनीतिक और आर्थिक रिश्ते धीरे-धीरे बढ़ाए.
  • हालांकि, कुछ अमेरिकी राजनेताओं ने इस समझौते की आलोचना की, इसे अपर्याप्त बताया और ईरान के असली इरादों पर सवाल उठाए.
  • मई 2018 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने JCPOA से एकतरफा वापसी की घोषणा की और ईरान पर लगे प्रतिबंध फिर से लागू कर दिए.
  • इसके बाद अमेरिका ने ‘अधिकतम दबाव’ (Maximum Pressure) नीति अपनाई, जिसमें ईरान पर कड़ी आर्थिक और सैन्य दबाव डाला गया.
  • 2019-20 में अमेरिका के प्रतिबंधों और सैन्य कार्रवाई के बीच, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ी से आगे बढ़ाया.
  • इस दौरान दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंचा, जिसमें फारस की खाड़ी क्षेत्र में सैन्य टकराव और मिसाइल हमले शामिल थे.
  • जो बाइडेन प्रशासन ने JCPOA में वापसी की कोशिशें शुरू कीं और बातचीत का दौर शुरू हुआ.
  • हालांकि, ये वार्ताएं बार-बार अटक गईं और कोई स्थायी समझौता नहीं हो पाया. ईरान ने यूरेनियम संवर्धन जारी रखा.
  • 2025 में ट्रंप की वापसी के बाद ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु मुद्दे को लेकर बातचीत का सिलसिला जारी है, लेकिन भरोसे की कमी और पारस्परिक शर्तों को लेकर गहरी खाई अब भी बनी हुई है.
  • डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद अमेरिका ने "मैक्सिमम प्रेशर" नीति को फिर से तेज़ कर दिया है, जबकि ईरान अपनी यूरेनियम संवर्धन नीति से पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा.

 

हालांकि ओमान जैसे देशों की मध्यस्थता से पांच दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन किसी ठोस समझौते पर अब तक सहमति नहीं बन पाई है. ईरान जहां अपनी रणनीतिक संप्रभुता और सुरक्षा की बात कर रहा है, वहीं अमेरिका का साफ कहना है "परमाणु बम की इजाज़त नहीं दी जाएगी, किसी भी कीमत पर".

ईरान का तर्क: हमें लीबिया नहीं बनना

ईरान इस परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व का सुरक्षा कवच मानता है. उसके अनुसार, लीबिया, इराक और यूक्रेन जैसे देशों ने जब अपने हथियार छोड़े, तो वे बाहरी हस्तक्षेप के शिकार हो गए. ईरान का मानना है कि पश्चिमी शक्तियां वादे तो करती हैं, लेकिन अपने रणनीतिक हितों के चलते उन्हें तोड़ भी देती हैं. 

इसी कारण यह टकराव अब सिर्फ इज़राइल और ईरान तक सीमित नहीं रह गया है. इसमें अमेरिका की सक्रिय रणनीतिक भूमिका, सऊदी अरब की मौन प्रतीक्षा, रूस और चीन की संभावित प्रतिक्रियाएं और समूचे खाड़ी क्षेत्र की स्थिरता शामिल हो चुकी है. 

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