Jawaharlal Nehru ने China के सपनों पर फेरा पानी, Dalai Lama के लिए किया था ऐसा काम
दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो तिब्बत की आध्यात्मिक पहचान हैं, जिन्होंने भारत में निर्वासन के बाद भी दुनिया को शांति, करुणा और अहिंसा का संदेश दिया. अब उनके उत्तराधिकारी को लेकर चीन और तिब्बती निर्वासित सरकार के बीच पुनर्जन्म की प्रक्रिया पर विवाद गहराता जा रहा है.
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तिब्बत की मिट्टी में जन्मे और पले-बढ़े एक साधारण बच्चे की असाधारण यात्रा ने आज उसे पूरी दुनिया के लिए शांति, करुणा और अध्यात्म का सबसे बड़ा प्रतीक बना दिया है. यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो की सच्ची कहानी है. उनका जीवन भारत, तिब्बत और दुनिया भर में मानवीय मूल्यों के लिए किए गए संघर्ष की मिसाल है.
1935 में उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर गाँव में जन्मे तेनजिन ग्यात्सो को महज दो साल की उम्र में यह पहचान मिली कि वे 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म हैं.
कुछ विशेष धार्मिक संकेतों, सपनों और वस्तुओं की पहचान के ज़रिए उन्हें खोजा गया. फिर उन्हें विशेष शिक्षा और प्रशिक्षण दिया गया और साल 1940 में उन्हें विधिवत 14वें दलाई लामा घोषित किया गया. उस समय वह सिर्फ 5 साल के थे. वे बचपन से ही बौद्ध दर्शन, तिब्बती संस्कृति और नेतृत्व की शिक्षा में रचे-बसे रहे.
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1950 में चीन ने तिब्बत पर सैन्य कब्जा कर लिया. उस समय तेनजिन ग्यात्सो केवल 15 वर्ष के थे, लेकिन उन्होंने नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली. उन्होंने वर्षों तक चीन के साथ शांतिपूर्ण बातचीत का प्रयास किया, लेकिन जब 1959 में तिब्बत में एक बड़ा जनविद्रोह हुआ और स्थिति पूरी तरह से अस्थिर हो गई, तब उन्हें अपने जीवन की सबसे कठिन यात्रा पर निकलना पड़ा. दलाई लामा, उनके परिवार और हजारों अनुयायियों को तिब्बत छोड़ना पड़ा. यह सफर न सिर्फ शारीरिक रूप से कठिन था, बल्कि भावनात्मक रूप से भी गहराई तक झकझोरने वाला था. लोग भेष बदलकर, ट्रकों के नीचे छिपकर भारत की सीमा की ओर बढ़े, क्योंकि चीन दलाई लामा को जिंदा पकड़ना नहीं चाहता था.
दलाई लामा ने पंडित नेहरू को लिखी चिट्ठी
इस मुश्किल घड़ी में भारत ने "अतिथि देवो भव" की परंपरा को जीवंत कर दिया. दलाई लामा ने पंडित नेहरू को एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने भारत में शरण देने की विनती की. नेहरू ने मानवीयता के आधार पर उन्हें और उनके अनुयायियों को भारत आने की अनुमति दी. 31 मार्च 1959 को दलाई लामा भारत में दाखिल हुए. पहले कुछ समय तवांग और फिर मसूरी में रहने के बाद वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बसे, जो आज तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय है. यहीं से वे अब भी पूरी दुनिया को अहिंसा, करुणा और सह-अस्तित्व का संदेश दे रहे हैं.
दलाई लामा का जीवन केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यंत प्रभावशाली रहा है. उन्होंने तिब्बत की आज़ादी के लिए पूरी दुनिया में आवाज़ उठाई लेकिन कभी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया. इसके लिए उन्हें 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. बौद्ध दर्शन में पीएचडी कर चुके तेनजिन ग्यात्सो को अब तक 85 से अधिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और उपाधियाँ मिल चुकी हैं.
आज दलाई लामा 90 वर्ष के हो चुके हैं. लेकिन उनके उत्तराधिकारी को लेकर बहस फिर एक बार गरमा गई है. दलाई लामा ने हाल ही में अपने जन्मदिन पर स्पष्ट किया कि उनका उत्तराधिकारी उनकी मृत्यु के बाद चुना जाएगा, परंपराओं के अनुसार. पुनर्जन्म की इस प्रक्रिया को चीन मान्यता नहीं देता और उसका दावा है कि अगला दलाई लामा वह खुद चुनेगा. यही विवाद इन दिनों चीन और तिब्बत की निर्वासित सरकार के बीच तकरार का मुख्य कारण बना हुआ है.
बच्चों में दलाई लामा होने के संकेत मिलते हैं
दलाई लामा की उत्तराधिकारी खोज की प्रक्रिया बेहद रोचक और रहस्यमयी मानी जाती है. यह बौद्ध धर्म की पुनर्जन्म मान्यता पर आधारित है. वरिष्ठ लामा कई धार्मिक संकेतों, सपनों, भविष्यवाणियों और पिछले जीवन की यादों के आधार पर बच्चे को पहचानते हैं. कभी-कभी अंतिम संस्कार के समय चिता से निकली धुएं की दिशा, मृत लामा की देखी अंतिम दिशा, और उनके पुराने सामानों की पहचान भी निर्णायक होती है. जिन बच्चों में दलाई लामा होने के संकेत मिलते हैं, उनसे विशेष परीक्षाएँ ली जाती हैं, जैसे कि पिछले लामा की माला, छड़ी या अन्य वस्तुओं को पहचानना.
तेन्जिन ग्यात्सो ने स्वयं 2 वर्ष की उम्र में जब उन वस्तुओं को देखा, तो सहज रूप से कहा, "ये मेरी हैं." यही शब्द उनकी पहचान के प्रमाण बन गए. इसके बाद उनका वर्षों तक प्रशिक्षण हुआ और अंततः उन्हें बौद्ध धर्मगुरु के रूप में स्वीकार किया गया.
आज वे केवल तिब्बत के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति, करुणा और सच्चाई की जीवित प्रतिमा हैं. उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि संघर्ष, निर्वासन और पीड़ा के बावजूद भी इंसान अगर अपने मूल्यों और विश्वासों पर अडिग रहे, तो वह पूरे संसार को रोशनी दे सकता है.
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