भारत-पाक के बीच WAR छिड़ी तो इंडिया में कौन करेगा इसकी औपचारिक घोषणा?

ललित यादव

India Pakistan War: भारतीय सेना भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रही है. हालात ऐसे बन गए हैं जैसे युद्ध छिड़ गया हो. तो क्या सच में दोनों देशों के बीच जंग शुरू हो गई है? और अगर ऐसा है, तो इसका औपचारिक ऐलान कौन करेगा?

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 India-Pakistan War: पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब भारत ने 6 मई की रात आतंकियों के ठिकानों पर हमला करके दिया. लेकिन पाकिस्तान इसे उकसाने वाली कार्रवाई मान रहा है और उसने सीमा के साथ-साथ रिहायशी इलाकों पर भी हमले शुरू कर दिए हैं.

भारतीय सेना भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रही है. हालात ऐसे बन गए हैं जैसे युद्ध छिड़ गया हो. तो क्या सच में दोनों देशों के बीच जंग शुरू हो गई है? और अगर ऐसा है, तो इसका औपचारिक ऐलान कौन करेगा?

युद्ध की राह: धीरे-धीरे बढ़ता तनाव

युद्ध अचानक नहीं होता, यह धीरे-धीरे फैलता है. इसकी शुरुआत अक्सर राजनीतिक बयानबाजी से होती है, जिसकी वजह कोई घटना होती है. भारत और पाकिस्तान के मामले में देखें तो पहलगाम हमले को पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमला माना गया. इसके बाद भारत ने कूटनीतिक कदम उठाए और पाकिस्तान के साथ कुछ समझौते तोड़ दिए.

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फिर दोनों देशों ने एक-दूसरे पर कई तरह की पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं. तीसरे चरण में सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ाई गई. इसी बीच भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर सीमित सैन्य कार्रवाई की.

पूर्ण युद्ध: जब सीमाएं टूट जाती हैं

इसके बाद आता है पूर्ण युद्ध. खुली जंग में लड़ाई सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं रहती, यह पूरे देश में कहीं भी हो सकती है. दुश्मन अचानक कहीं भी हमला कर सकता है. इसके बाद सबसे खतरनाक चरण परमाणु युद्ध का है. हालांकि इसकी संभावना कम है क्योंकि कई बड़ी ताकतें दोनों देशों के बीच सुलह कराने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन पाकिस्तान जिस तरह से आतंकियों के हाथों की कठपुतली बना हुआ है, डर पूरी तरह से खत्म नहीं होता.

आम नागरिकों को कब पता चलता है जंग शुरू हो गई?

संविधान में युद्ध के ऐलान की कोई सीधी प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसमें राष्ट्रीय आपातकाल की बात जरूर है. अगर घोषणा की बात करें तो राष्ट्रपति के पास इसका अधिकार है. लेकिन ऐसा नहीं होता कि सीधे ऐलान कर दिया जाए कि देश पूर्ण युद्ध में है. संविधान का अनुच्छेद 352, जिसमें राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा का नियम है, युद्ध जैसी स्थिति से निपटने का सबसे करीबी तरीका माना जाता है.

कौन लेता है युद्ध का फैसला?

राष्ट्रपति देश की सेना के सबसे बड़े कमांडर हैं, इसलिए यह अधिकार उनके पास है. लेकिन वह अकेले फैसला नहीं ले सकते, उन्हें सरकार की सलाह लेनी होती है. युद्ध या शांति की कोई भी औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री और कैबिनेट की सलाह पर ही होती है.

असल में युद्ध का फैसला प्रधानमंत्री की अगुवाई वाला केंद्रीय मंत्रिमंडल लेता है, जिसमें रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय शामिल होते हैं. ज़रूरत पड़ने पर सेना प्रमुखों, खुफिया एजेंसियों और राजनयिकों की राय भी ली जा सकती है. संसद देश के रक्षा बजट को मंजूरी देती है और सरकार से इस बारे में सवाल भी पूछती है.

कागज़ों पर क्या होता है?

अगर सरकार को लगता है कि हालात बहुत बिगड़ गए हैं और आधिकारिक तौर पर युद्ध का ऐलान होना चाहिए, तो सभी मिलकर फैसला करते हैं और राष्ट्रपति को एक लिखित सिफारिश भेजते हैं. इसके बाद राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लगा सकते हैं. यह आपातकाल देश के कुछ हिस्सों में भी लगाया जा सकता है. संसद की मंजूरी के बाद यह 6 महीनों तक लागू रहता है और जरूरत पड़ने पर इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है. जब सरकार को लगता है कि हालात काबू में हैं, तो राष्ट्रपति इसे कभी भी वापस ले सकते हैं.

भारत ने कभी औपचारिक रूप से युद्ध का ऐलान नहीं किया

भारत और पाकिस्तान के बीच पहली लड़ाई कश्मीर को लेकर हुई, जब पाकिस्तान के कबीलाई लड़ाके और सैनिक जम्मू-कश्मीर में घुस आए. उस समय भारत ने कश्मीर की मदद की. लेकिन दोनों देशों में से किसी ने भी युद्ध का ऐलान नहीं किया, बस लड़ाई शुरू हो गई.

साठ के दशक में भारत-चीन युद्ध में भी ऐसा ही हुआ. चीन ने अचानक सीमा पर बड़ी सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी. किसी ने कोई ऐलान नहीं किया.

1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध हल्के तरीके से शुरू हुआ, लेकिन फिर बढ़ता गया. इस बार भी किसी तरफ से युद्ध की कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई.

1971 की भारत-पाकिस्तान जंग बांग्लादेश को लेकर हुई. 13 दिन चली इस लड़ाई में भारत जीता और बांग्लादेश आजाद हुआ, लेकिन युद्ध का कोई औपचारिक ऐलान नहीं हुआ.

हमारे देश में युद्ध अक्सर घटनाओं की जवाबी कार्रवाई के तौर पर शुरू होता रहा है. हमने कभी पहले हमला नहीं किया. ऐलान के बिना भी कई संकेत होते हैं, जिनसे आम लोग स्थिति की गंभीरता को समझ सकते हैं, जैसे सेना की गतिविधियां, मीडिया कवरेज, सरकार की भाषा और यातायात में बदलाव भी संकेत देते हैं.

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