उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा किनारे 5 किलोमीटर की परिधि में चल रहे 48 स्टोन क्रशरों बंद करने का आदेश
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश पारित करते हुए गंगा के किनारे 5 किलोमीटर की परिधि में चल रहे 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया है.
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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश पारित करते हुए गंगा के किनारे 5 किलोमीटर की परिधि में चल रहे 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया है.
मातृसदन आश्रम ने 2022 में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें यह बताया गया कि रायवाला से भोगपुर तक की गंगा घाटी में अवैध खनन खुलेआम चल रहा है, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) पहले ही इन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं.
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण सवाल उभरा- अगर पहले 5 किलोमीटर क्षेत्र में स्थित स्टोन क्रशर बंद कर दिए गए थे, तो उन्हें दोबारा किसके आदेश पर खोला गया?
जबाब मिला कि राज्य सरकार ने अतिरिक्त महाधिवक्ता की सलाह पर इन्हें फिर से खोल दिया, जबकि कानून सचिव की सलाह इसके विपरीत थी. यह खुलासा कोर्ट को चौंकाने वाला लगा.
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गंगा के आंचल से जुड़ी मिट्टी की सच्चाई कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट से सामने आई. बिना नंबर प्लेट वाले ट्रैक्टर, गहरे गड्ढे, टायरों के निशान और सात मीटर तक खुदाई! यह नजारे किसी प्राकृतिक आपदा के नहीं, बल्कि मानव निर्मित विनाश के थे.
सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि खनन से रोजगार मिलता है और बालू जमा होने से खेत डूब सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अवैज्ञानिक और अनियंत्रित खनन गंगा की धारा को प्रभावित करता है, जिससे भूजल स्तर गिरता है, मानसून में बाढ़ की स्थिति बनती है और किसानों की फसलें नष्ट होती हैं. यही नहीं, ध्वनि और वायु प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत NMCG और CPCB द्वारा दिए गए निर्देश आज भी प्रभाव में हैं और इनका उल्लंघन न केवल अवमानना है, बल्कि जनविश्वास के साथ धोखा भी है.
इसलिए, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया गया कि वह 24 अगस्त 2017 को जारी किए गए उस आदेश का अक्षरशः पालन करे, जिसके तहत 48 स्टोन क्रशरों को बंद किया गया था. साथ ही, इन क्रशरों की बिजली और पानी की आपूर्ति तत्काल बंद की जाए और इसकी जिम्मेदारी जिला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, हरिद्वार की व्यक्तिगत रूप से तय की गई है.
इनपुट: लीला सिंह बिष्ट