आजादी से पहले हुई थी जातिगत जनगणना, तब महज 4,147 ही जातियां थीं, अब कितनी हैं?

News Tak Desk

आखिरी बार आजादी से पहले वर्ष 1931 में जातिगत जनगणना कराई गई थी. तब 4,147 जातियों की पहचान की गई थी. इसके बाद वर्ष 2011 में एक बार फिर सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) कराई गई, लेकिन आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए.

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तस्वीर: न्यूज तक.
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मोदी कैबिनेट ने जातिगत जनगणना पर स्वीकृति की मुहर लगा दी है. जाति जनगणना मूल जनगणना में ही शामिल होगी. इससे पहले आजादी से पहले वर्ष 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी. ध्यान देने वाली बात है कि विपक्षी दलों की ओर से जातिगत जनगणना की जोरदार मांग की जा रही थी. 

वर्ष 1931 में 4,147 जातियों की पहचान की गई थी. इसके बाद वर्ष 2011 में एक बार फिर सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) कराई गई, जिसमें कुल 46 लाख जातियों का जिक्र हुआ, लेकिन इन आंकड़ों को आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया. 

ब्रिटिश काल में शुरू हुआ था जनगणना 

देश में जनगणना की शुरूआत अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हुई थी. पहली बार 1872 में जनगणना कराई गई थी. इसके बाद हर 10 साल में जनगणना होता रहा है. ये क्रम पहली बार कोरोना काल में टूट गया. अब 2025 में जनगणना कराने की तैयारी है. सरकार का दावा है कि इस बार जातिगत जनगणना कराई जाएगी. 

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पहले 1,646 जातियां, फिर बढ़कर 4,147 हुईं 

साल 1901 में जातिगत जनणना में 1,646 जातियों का होना पाया गया था. 1931 में ये बढ़कर 4,147 हो गईं.  इन्हीं आंकड़ों को बाद में मंडल कमीशन की रिपोर्ट का आधार बनाया गया. 

1931 में जातिगत जनगणना के ये आंकड़े 

साल 1931 में बिहार, झारखंड और उड़ीसा (अब ओडिशा) एक रियासत थी. तब यहां कुल 97 जातियों की संख्या पाई गई थी. NBT में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक बिहार, झारखंड और ओडिशा की कुल आबादी 3 करोड़, 47 लाख 92 हजार 764 थी. तब इस रियासत में  97 जातियां थीं. इसमें से 14 जातियां ओडिशा में पाई जाती थीं. यानी बिहार और झारखंड में 83 जातियां थीं. इनमें ये जातियां प्रमुख थीं...

  • ब्राह्मण- 21 लाख से ज्यादा
  • भूमिहार-  9 लाख
  • राजपूत- 14 लाख
  • अनुसूचित जाति- 13 लाख
  • कुर्मी- 14 लाख
  • बनिया- दो लाख से ज्यादा
  • धोबी- 4 लाख
  • दुसाध- 13 लाख
  • तेली- 10 लाख से ज्यादा

संयुक्त हिंदुस्तान में भी सबसे ज्यादा आबादी तब हिंदुओं की थी. वर्ष 1931 में कुल 35.2 करोड़ की आबादी में 22 करोड़ 44 लाख हिंदू थे. ये कुल आबादी का 65 फीसदी थे. वहीं मुसलमानों की आबादी 3 करोड़ 58 लाख जो कुल आबादी का 10 फीसदी ही थी. 

आजादी मिली और बदल गई जातिगत जनगणना 

देश को आजादी मिलने के बाद 1951 में जातिगत जनगणना केवल अनुसूचित जातियों (SC) और जनजातियों (ST) तक सीमित कर दिए गया. अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की जातियों की गिनती बंद कर दी गई. यही व्यवस्था आगे की जनगणनाओं में भी जारी रही. 

2011 में SECC हुआ पर आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए 

वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जातिगत जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा. इसके बाद सरकार ने SECC (Socio Economic and Caste Census) के नाम से वर्ष 2011 में यूपीए सरकार के दौर में पहली बार सामाजिक-आर्थिक जातिगत सर्वे कराया गया था. हालांकि इसके आंकड़े बाहर नहीं आए. तब लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ने जातिगत जनगणना कराने की मांग उठाई थी. 

2011 के आंकड़ों में भारी गड़बड़ियां  

2021 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा था कि 2011 के आंकड़ों में भारी गड़बड़ियां हैं. डेटा संग्रहण में अनेक त्रुटियां और डुप्लिकेशन की शिकायतें थीं. उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र में जहां SC, ST और OBC मिलाकर 494 जातियां हैं, वहां SECC में 4,28,677 जातियों की गिनती हो गई है. 

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