ट्रंप के टैरिफ के बीच भारत ने बढ़ाई अमेरिका से तेल की खरीदारी
टैरिफ के इस यद्ध में जहां पूरी दुनिया डोनाल्ड ट्रंप से टकराव की स्ट्रैटजी बना रही है, वहां भारत सरकार ने एक ऐसा रास्ता निकाल लिया है जिससे ना ही ट्रंप नाराज़ होंगे, ना भारत का नुकसान होगा और ना ही अमेरिका की कोई हानि, बल्कि फायदा ही होगा दोनों देशों का. नुकसान होना है तो वो है मिडिल ईस्ट के अरब देशों का. भारत सरकार ने अमेरिका के साथ ट्रेड डेफिसिट कम करने के लिए, और अरब देशों पर साइलेंट प्रेशर बनाने के लिए क्रूड ऑयल को एक स्ट्रैटजिक हथियार बना दिया है .
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टैरिफ के इस यद्ध में जहां पूरी दुनिया डोनाल्ड ट्रंप से टकराव की स्ट्रैटजी बना रही है, वहां भारत सरकार ने एक ऐसा रास्ता निकाल लिया है जिससे ना ही ट्रंप नाराज़ होंगे, ना भारत का नुकसान होगा और ना ही अमेरिका की कोई हानि, बल्कि फायदा ही होगा दोनों देशों का. नुकसान होना है तो वो है मिडिल ईस्ट के अरब देशों का. भारत सरकार ने अमेरिका के साथ ट्रेड डेफिसिट कम करने के लिए, और अरब देशों पर साइलेंट प्रेशर बनाने के लिए क्रूड ऑयल को एक स्ट्रैटजिक हथियार बना दिया है .
आखिर मुद्दा क्या है?
सबसे पहले जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप का सबसे बड़ा मुद्दा क्या है? दरअसल, अमेरिका का व्यापार घाटा यानी Trade Deficit. मतलब अमेरिका दूसरे देशों से ज़्यादा सामान खरीदता है, लेकिन बेचता कम है. उदाहरण से समझिए, अगर अमेरिका किसी देश से ₹100 का सामान खरीदता है, लेकिन उस देश को सिर्फ ₹60 का बेचता है तो ₹40 का ट्रेड डेफिसिट हो गया. 2024 में अमेरिका का कुल ट्रेड डेफिसिट था करीब $982 बिलियन. गुड्स में अमेरिका को $2 ट्रिलियन का घाटा हुआ, जबकि सर्विस सेक्टर में उसे $287 बिलियन का फायदा. लेकिन गुड्स घाटा इतना भारी था कि वो सर्विस का फायदा भी निगल गया. चीन, मैक्सिको और वियतनाम के साथ अमेरिका को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ. लेकिन भारत? दरअसल, भारत के साथ अमेरिका को सिर्फ $5 बिलियन का घाटा हो रहा था. और भारत सरकार अब इस घाटे को खत्म करने की तैयारी में है. अमेरिका के इस घाटे को कम करने के लिए भारत सरकार ने जो रास्ता चुना है, वो है Crude Oil. मार्च 2025 में भारत ने अमेरिका से क्रूड ऑयल परचेस 67% तक बढ़ा दिया है और सिर्फ एक महीने में. यानि फरवरी के मुकाबले मार्च में भारत ने अमेरिका को क्रूड के ज़्यादा ऑर्डर्स दे दिए.
किस कीमत पर हुआ यह फैसला
सवाल ये उठता है कि किसकी कीमत पर? दरअसल, अरब देशों की कीमत पर. मार्च में भारत ने इराक से 17% कम क्रूड लिया, सऊदी अरब से 16% कम, यूएई से 1% कम, और ये कटौती अमेरिका को फायदा देने के लिए की गई. अब आप सोच रहे होंगे कि भारत को इससे क्या फायदा? दरअसल, भारत अपने कुल क्रूड ऑयल का 85% इंपोर्ट करता है. और भारत की रिफाइनरीज इतनी वर्सटाइल हैं कि वो किसी भी ग्रेड का ऑयल प्रोसेस कर सकती हैं. Light Sweet Crude अमेरिका से आता है. Heavy Sour Crude रूस, वेनेजुएला से और Middle Eastern Blend सऊदी, इराक से आता है . इसलिए जब भारत को किसी खास देश से तेल खरीदने की मजबूरी नहीं है, तो वो डिप्लोमैटिकली स्मार्ट फैसले ले सकता है. और यही हुआ. भारत ने तय किया कि अगर अमेरिका को संतुष्ट रखना है, तो क्रूड डीलिंग से ट्रेड डेफिसिट को बैलेंस किया जा सकता है.
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फैसले का क्या होगा असर?
अब सवाल है कि इस पूरे कदम से क्या होगा? दरअसल, अमेरिका को फायदा होगा क्योंकि उसे ज़्यादा क्रूड बेचने से एक्सपोर्ट बढ़ेगा, और ट्रेड डेफिसिट घटेगा. भारत को फायदा होगा क्योंकि वह अमेरिका के साथ रिलेशन सुधार सकेगा, और ट्रंप के टैरिफ से बच पाएगा. और अरब देशों को नुकसान इसलिए होगा क्योंकि भारत उनकी बजाय अमेरिका को प्राथमिकता दे रहा है. WIN-WIN डील. अब आप सोचिए दुनिया के कितने देशों के पास ये कैपेसिटी है कि वो रातों-रात अपने क्रूड सप्लायर बदल लें? जवाब है बहुत कम.
भारत पहले की नीति हो रही सफल
भारत की ये रिफाइनिंग कैपेसिटी और डाइवर्सिफाइड स्ट्रेटेजी भारत को आज ग्लोबल इनर्जी पॉलिटिक्स में लीडर बना रही है. और जब पूरी दुनिया ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से डरी हुई है, भारत चुपचाप एक ऐसा कदम चुका है जिससे ट्रंप भी खुश, भारत भी सेफ और अमेरिका के साथ रिश्ते भी और मज़बूत. अगली बार से भारत की फॉरेन पॉलिसी में असली मास्टरस्ट्रोक के रूप में ये क्रूड ऑयल वाला मूव याद रखा जाएगा. ट्रंप के दौर में भी, भारत ने डिप्लोमेसी की भारत का हित पहले वाली नीति नहीं छोड़ी,बस दिशा बदल दी.